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मिडनाईट होली  – nisargdarpan
उत्सव विशेष

मिडनाईट होली 

मिडनाईट होली 

समुचे भारतमे मर्यादापुरुषोत्तम प्रभू श्रीराम सभी को वंदनीय है इसमे कोई संदेह नही. लेकीन सातपुडा पर्वत मे बसे मेलघाट के आदिवासी लोग आज भी लंका नरेश रावण को पुजते है. इतना हि नही यहा के ज्यादा तर कसबो मे लंका नरेश रावण के बेटे मेघनाथ का स्तंभ है जिसकी पूजा यहा के कोरकू जमाती के आदिवासी लोग करते है.

मेलघाट अमरावती जिल्लास्थित चिखलदरा और धारणी तहसील से बना एक अनोखा क्षेत्र है जो पुरे भारतमे मेलघाट टायगर प्रोजेक्ट के नाम से जाना जाता है. यहा का चिखलदरा तो धरती का स्वर्ग माना जाता है. यहा एशिया का सबसे बडा स्काय वॉक बनने जा रहा है. इसी मेलघाट का सबसे बडा त्योहार होली को माना जाता है. आदिवासी समुदायमे होली का महत्व दिवाली से बडा है. कूच भी नयी खरेदी, शुभकार्य शादी ब्याह इसी समय मे किया जाता है. यहा रात मे होली का त्योहार बडे धूमधाम और शानो शौकतमे अलग ढंग मे मनाया जाता है. इसी होली को देखने के लिये मै अपने दोस्त शशांक के साथ मेलघाट का दौरा किया.

अमरावती धारणी रस्ते पर सिमाडोह यहा बडा गावं है. इसी गावं के होली को देखने श्याम के 6 बजे यहा पहुचे. लेकीन गावं शांत था. थोडा फ्रेश होकर खाना खाकर रात के 9 बजे गावं का चक्कर मारने निकले. मुख्य गावं कि होली हमारे पहुचने के पहल जलाई गयी. फिर हमने सिमाडोह के ढाने के तरफ अपना मोर्चा बढाया. ढाने के लोग बडे सजधज कर होली कि पूजा करने के लिये एक एक करके जमा होने लगे. गाव के बाहर जहा वन विभाग का नाका था वहा खुले जगह सब बच्चे से लेकर बुढो तक एकठ्ठा हो गये. यहा पे एक कि जगह दो होली का प्रबंध था. नर नारी के प्रतिमा स्वरूप पूरब कि और यह होली का प्रबंध किया था. बांबू कि लकडी और सुखे लकडी के साथ होली कि पूजा कि जा रही थी. दो होली के बिच एक दुपट्टे का झुला भी बंधा हुआ देखा. रात के साडे नौ दस बजे गाने और नृत्य के साथ यहा कि होली जल पडी. जिस घर मे होली के दिन किसी सदस्य कि मौत होती है उनके परिवार जण सबसे आखिर मे पूजा करने आते है. यह जानकारी वहा ओमभैया तिवारी ने दि. इसके बाद हमने रात के 11 बजे माखला कि और अपनी गाडी निकाली. माखला सिमाडोह से लगबग 11 किमी दुरी पर है लेकीन जंगल घना होने के कारण दिनके उजाले मे भी जाने मे बाहर के लोगो के पसीने छूटते है.

मिडनाईट होली

रात के साडे ग्यारा के वक्त हम दोनो माखला पहुचे. हर घर के सदस्य नये कपडो के साथ बनसवरकर घरसे बाहर गावं के बाहर टेकडी के पास एकठ्ठा हो रहे थे. छोटे बच्चो के साथ युवा भी बडी खुशबू के साथ एक एक निकल रहे थे मानो किसी शादी हो.

यहा बनती है जोडीया

आपको एक बात बताना भूल हि गया, इस होली के वक्त कोई रांझा अपने हीर को अपने प्रेम का इजहार करता है और किसी बसंती ने इन्कार किया तो कोई शोले के विरू जैसा मजनू यहा तमाशा खडा करता है, यहा तक कि कोई मजनू प्यार मे पागल होकर होली कि आग मे कुदने से कतराते नही वो भी पुरे गावं के आगे. लेकीन अभी मोबाईल के जमाने मे यहा के युवक युवती व्हात्स अप पर हि अपना प्यार का इजहार करने लगे है. मेलघाट कि होली कुल 5 दिन चलती है फागुन कि पूर्णिमा से लेकर बसंतपंचमी तक. गावं के बाहर टिले के पास मेघनाथ का स्तंभ है जहा पुरे माखला के रहिवासी जमा हो गये. इसमे आदिवासी लोगो के साथसाथ दुसरे समाज के लोगो का समावेश रहता है.

महिलाप्रधान समाज 

आदिवासी समाज मे स्त्री प्रधान संस्कृती है. इसलिये ज्यादा तर सरपंच,पोलीस पाटील महिला दिखाई देती है. माखला गावं के सभी लोग नये कपडे पहनकर पोलीस पाटील को लाने गये और उनके करकमलो द्वारा होली का शुभारंभ किया गया. पहली ज्योत उनके हाथो से लगाने के बाद ढोलक, टिमकी, बासरी के धून पर सभी लोग झुमने लगते है. यहा के हर तौहार मे शिद्डू शामिल रहती है लेकीन हर एक अपने दुनिया मे मस्त रहता है उसकी तकलीफ दुसरो को नही होती है. आज भी लडकी की मर्जींके बगैर यहा उनकी शादी नहीं होती.

गिले शिकवे भुलकर दोस्ती 

होली कि त्यौहार और एक खास बात यह है कि सभी लोग अपने साल भर के झगडे भुलकर एक हो जाते है मानो कूच हुआ हि नही. मिडनाईट होली तो बारा के बाद रंग मे आकर जैसे जैसे रात बढती है उतना हि गाना, नृत्य का मजा बढने लगता है. खास बात यह है कि लंकानरेश रावण आदिवासी लोगो के पुजनीय है इसलिये उनके गानो का बडा महत्व यहा रहता है.

घुंगरू बाजार 

मेलघाट के लगबग ज्यादा तर गावं मे मेघनाथ स्तंभ रहता है और साथ मे साग का झुला रहता है. होली के समय बडे बडे कसबो और गावं मे घुंगरू बाजार भरता है. बाजार मे घुंगरू के साथ खाणे पिणे कि अलग अलग सामग्री रहती है. इसी बाजार मे जिस कि युवक को एखादी युवती पसंद आयी तो उसे वो भगाकर ले जाता है. बाद में पंचायत मे लेनदेन के बाद शादी और खाणे का जश्न होता है .यह परंपरा काफी पुराणी है.

फगुआ (फगना)

होली के तिसरे दिन गावं के महिलाये और बच्चे एकठ्ठे होकर होली के गीत गाती है और नाचती भी है. गावंके बाहर रस्सी से नाका तयार कर हर एक गाडीवालो से पैसे के स्वरूप मे आने जाने का लगान वसुला जाता है. बाहर के लोग भी इन आदिवासी लोगो के नृत्य से खुश होकर बडे आनंद मे फगुआ देते है.

आरे होली खेलत रामनु हो,से आरे होली खेलत रामनु हो,सुमंगल होत हृद्य ,होली खेलत राम नु हो से लेकर तुम बेचो अपने जोरू का लेहंगा ..मगर देदो बाबूजी हमको फगुआ जैसे गाने ढोलक कि आवाज पर बजाये जाते है .

अलग अलग गावं जैसे हतरु, कारा, कोठा, रायपूर, काटकुंभ, चुरणी, जारीदा मे अलग अलग दिन होली मनाई जाती है, और घुंगरू बाजार का आयोजन किया जाता है. सभी आदिवासी लोग इस होली के त्यौहार को बडे अलग ढंग से मनाते है.अगर आपको भी यह होली पसंद आयी तो आप भी मेलघाट जरूर पधारिये.

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